देश की पुकार
कूद जा ऐ मुनावर तू भी
सरफ़रोशी की राह में,खुद को मुतला कर दे तू भी
आज देश परस्ती की चाह में।जज़्बा-ऐ वतन को हमेशा साथ ले कर चल
वह आग है तेरी तू इसी आग में जल।फूलों से भी नरम है
तेरा ये कौम-ए-हिन्दशोलों से भी ज्यादा गरम है
तेरा ये कौम-ए-हिन्दमज़हब धर्म तेरा ईमान यही,
गीता बाईबिल तेरी कुरान यही।अपने वतन का तू एक राज़दार बन
इसका चमकता हुआ तू एक किरदार बनबन जा तू इसका एक कारवां
इसका एक सच्चा तू नौजवान बनअपने लहू से तू इसको सजा दे
अपनी पलकों पर तू इसको बिठा देबारूद के ढेरों से तू खेलना सिख
हमलावरों से तू लड़ना सिख।सिख लस तू अंगारों पर चलना
काटों की नोंक पर तू पलनाबहती दरिया का तू रुख़ मोड़ दे,
टूटे हुए ख़ामोश दिलो को तू जोड़ देनफ़रत के समाज को आज तू बदल डाल,
काम कर जा तू कोई बेमिसाल।वतन को तुम पर नाज़ है,
तू इसका एक जाबाज़ है।बन तू इसकी शान
अपने देश की तू पहचानअपने वतन का तू एक निगेहबान है
तू कर ले निछावर अपनी जान।तेरा सलाम यही होगा,
अपने इस वतन को
अपने इस चमन को।धन्यवाद
अमित कुमार