गजल: बद्दुआ, समझा- शिव काशी
सर्द आहें, दर्द, आँसू, सिसकियों की बद्दु आइश्क़ को फिर यूँ लगी कुछ हिचकियों की बद्दुआ ज़ख़्म देकर ज़िन्दगी को, रंग ख़ुद से छीने हैं … Read more
सर्द आहें, दर्द, आँसू, सिसकियों की बद्दु आइश्क़ को फिर यूँ लगी कुछ हिचकियों की बद्दुआ ज़ख़्म देकर ज़िन्दगी को, रंग ख़ुद से छीने हैं … Read more
“पिता” एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा या कह सकते उनके बिना जीवन ही कहाँ संभव होगा। वो हैं … Read more
यानि अबतक ज़िन्दगी कुछ वक़्त के लिए थम सी गई थी, जिन पटरियों पर कभी ट्रेनों का आना जाना थमता ना था वो भी रुक … Read more