अनछुए पहलू

क्या लिखूं

गजल: बद्दुआ, समझा- शिव काशी

सर्द आहें, दर्द, आँसू, सिसकियों की बद्दु आइश्क़ को फिर यूँ लगी कुछ हिचकियों की बद्दुआ ज़ख़्म देकर ज़िन्दगी को, रंग ख़ुद से छीने हैं … Read more

अनछुए पहलू

पिता- जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा

“पिता” एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा या कह सकते उनके बिना जीवन ही कहाँ संभव होगा। वो हैं … Read more

गाड़ी बुला रही है,सीटी बजा रही है,चलना ही जिंदगी है,चलती ही जा रही है

गाड़ी बुला रही है,सीटी बजा रही है,चलना ही जिंदगी है,चलती ही जा रही है

यानि अबतक ज़िन्दगी कुछ वक़्त के लिए थम सी गई थी, जिन पटरियों पर कभी ट्रेनों का आना जाना थमता ना था वो भी रुक … Read more