क्या लिखूं
0
सर्द आहें, दर्द, आँसू, सिसकियों की बद्दुआइश्क़ को फिर यूँ लगी कुछ हिचकियों की बद्दुआ

अनछुए पहलू

गजल: बद्दुआ, समझा- शिव काशी

सर्द आहें, दर्द, आँसू, सिसकियों की बद्दुआइश्क़ को फिर यूँ लगी कुछ हिचकियों की बद्दुआ

पिता- जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा

"पिता" एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा या कह सकते उनके बिना जीवन ही कहाँ...

गाड़ी बुला रही है,सीटी बजा रही है,चलना ही जिंदगी है,चलती ही जा रही है

यानि अबतक ज़िन्दगी कुछ वक़्त के लिए थम सी गई थी, जिन पटरियों पर कभी ट्रेनों का आना जाना थमता ना था...