गजल: बद्दुआ, समझा- शिव काशी
मोल कैसे जाने जिसको मिल गया सब मुफ्त ही नाख़ुदा का डूबना…? थी कश्तियों की बद्दुआ काम सारे करता देखो कोसते फिर भी सभी मोबाइल … Read more
मोल कैसे जाने जिसको मिल गया सब मुफ्त ही नाख़ुदा का डूबना…? थी कश्तियों की बद्दुआ काम सारे करता देखो कोसते फिर भी सभी मोबाइल … Read more
“पिता” एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा या कह सकते उनके बिना जीवन ही कहाँ संभव होगा। वो हैं … Read more
यानि अबतक ज़िन्दगी कुछ वक़्त के लिए थम सी गई थी, जिन पटरियों पर कभी ट्रेनों का आना जाना थमता ना था वो भी रुक … Read more