जब भी बात हो अमन की,
उनको शायद पसन्द नहीं।आतंकवाद का माहौल रहे
चाहते वो अमन नहीं।हम कदम बढ़ाते अमन का,
और वो आतंकवाद का,
देशद्रोही बातों को वो नाम देते ज़िहाद का,
मिटा दो उनलोगों को जो समझे नहीं
अपने वतन को वतन नहीं।जब भी बात करो अमन की
उनको शायद पसन्द नहीं।जब भी बात करो अमन की
उनको शायद अमन पसन्द नहीं।रेलवे के हों यात्री या स्कूलों के हो विद्यार्थी,
बेघर कर के लोगों को बना दिया सबको शरणार्थी,
उजाड़ दिए फूलों के बाग,
उनको शायद चमन पसन्द नहीं।सरहद पर खड़ा जवान, देश ना भूलेगा उनका एहसान
देश की रक्षा में जो हंसते हंसते क्र देते हैं अपनी जान कुर्बान।उनके क़ुरबानी की गाथा लिखते रुकेगी कभी कलम नहीं,
जब भी बात करो अमन की उनको शायद पसन्द नहीं।आतंकवाद का माहौल रहे, चाहते वो अमन नहीं।
जब भी बात करो अमन की शायद उनको पसन्द नहीं।-अमित कुमार