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पिता- जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा

“पिता” एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन की परिकल्पना करना भी ग़लत होगा या कह सकते उनके बिना जीवन ही कहाँ संभव होगा। 
वो हैं तो हम हैं, उनका नाम हमारी पहचान है या कह सकते हैं की उनसे ही हमारी ये पहचान है।
 उनके लिए क्या लिखूं…. 

पिता के साथ प्रेम

जिसने मुझे लिखा, जिसने मुझे इस क़ाबिल बनाया की मैं इन अक्षरों को लिख़,पढ़ पा रही हूँ।
दुनियाँ में माँ के लिए तो अनेकों लेख, कवितायें लिखी गई हैं, क्योंकी   माँ से हम भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, उनके साथ हम अपने सभी सुख़-दुःख सब कुछ बाँट लेते हैं पर शायद पिता के साथ नहीं।

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पिता के साथ प्रेम, डर जो कि आदर भाव के रूप में होता है इन दोनों का गहरा संगम होता है। जिसके वजह से थोड़ा असहज हो जाता है बात करना उनसे, ऐसा नहीं की वो समझेंगे नहीं बस एक उलझन है जो क़ी हमें रोक देती है।

डाँट के पीछे भी उनका प्यार ही होता है


 माँ तो हमारी गलतियों पे भी हमें प्यार से ही समझाती है पर पिता नहीं, वो हमें डाँटते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि हमारी एक ग़लती शायद कल हमारे लिए ही परेशानी का कारण बनेंगी और उस डाँट के पीछे भी उनका प्यार ही होता है हमारे लिए। परन्तु थोड़ा कठोर होता है वो प्रेम, उस प्रेम को परिभाषित करने के लिए उस दौर से गुजरना पड़ता है तब कही जा के समझ आता की पिता बनना सरल कार्य नहीं होता। 


“हम जितना प्यार माँ से करते उतना ही पिता से करते, पर कहने की हिम्मत नहीं होती है क्योंकि अक़्सर बहुत आत्मीय संबंधो में हम प्यार का इज़हार नहीं कर पाते हैं, प्यार का प्रदर्शन तो कभी नहीं। ऐसा नहीं की हम उनसे डरते हैं पर हाँ यह सहज़ संकोच हमारी संस्कृति है जिस वज़ह से पिता के प्रति हमारा प्रेम हमारे मन के अंदर ही डूबता उतरता रहता है, और हम उनसे कह नहीं पाते।”

 पिता नाम से ही ज़िम्मेदारी का एहसास होने लगता है।

पर हाँ अब थोड़ा समय बदल गया है। अब पिता भी बदल रहे हैं और बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ वो अब अपने बच्चों के साथ अपने रिश्तों को दोस्ताना बना रहे। पिता नाम से ही ज़िम्मेदारी का एहसास होने लगता है। हम अक़्सर सुनते हैं और देखा भी गया है की बेटियां पिता के ज़्यादा करीब होती, हर बेटी के लिए उसका पिता उसका पहला प्यार होता, वो अपने पिता को एक आदर्श पुरुष के रूप में देखती है।

उसी तरह पिता भी बेटी से भावनात्मक रूप से ज़्यादा करीब होते। पिता के हर हरक़त का प्रभाव बेटी के स्वभाव पर पड़ता है। वो अपने भविष्य में आने वाले पुरुष में अपने पिता की छाप को खोजती है। 

पिता हमारे हर ख़ुशी का ध्यान रखते हैं।

बेटों के लिये उनके पिता उनके हीरो होते हैं, बेटों पर पिता के स्वभाव, व्यवहार, चाल-ढाल सबका असर पड़ता। पर बेटे बेटियों जैसे अपने भाव को जाहिर नहीं कर पाते अपने पिता के सामने। लेकिन वो अपने पिता की ख़ुशी के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। 
 एक पिता हमारे हर ख़ुशी का ध्यान रखते हुए हमारी जरूरतों को पूरी करते हैं। हमारे लिए वो अपनी जिंदगी को भूल जाते हैं क्योंकि उनकी दुनियां उनके बच्चे बन जाते हैं।

माँ अगर हमें जन्म देती तो पिता हमें चलना सिखाते। पिता वह शख़्स है जो अपनी ज़रूरतों से पहले अपने बच्चों के लिए सोचता है।
 जिस तरह माँ बनना एक स्त्री के लिए सौभाग्य की बात होती है उसी तरह पिता बनना हर पुरुष के लिए गर्व की बात होती है।

“पिता है तो सर पे छत होने का एहसास होता वरना घर भी वीरान लगता।”

Parul Tripathi

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