‘जीवन का मूल्य’ – काव्य संग्रह

‘जीवन का मूल्य’

जीवन का मूल्य उनसे पूछो,
जिनको रहने को घर नहीं,
खाने को अन्न नहीं,
हम तो बहुत सम्पन्न है, पर
फिर भी रोते ऐसे,
जैसे हम बहुत विपन्न हैं।

जीवन का मूल्य उस माँ से पूछो,
जिसने अपने अजन्मी बच्ची को,
अपनी ही कोख़ में मारा होगा,
जिसको सीने से लगाने का सोचा होगा, पर
उसको खत्म अपने ही अंदर कर डाला होगा।

जीवन का मूल्य उस लड़की से पूछो,
देखे होंगे जिसने आने वाले कल के सुनहरे सपने,
पर, कुछ वहशियों ने रौंद दिए होंगे उन सपनों
को पुरे होने से पहले।

जीवन का मूल्य जरा उन नौनिहालों से तो पूछो,
जिनके हाथों में किताबों की जग़ह जुठे बरतन, और
खिलौनों की जग़ह झाड़ू है,
जो बचपने को भूल पेट भरने के लिए रोटी जुटाने में लगे हैं।

जीवन का असल मूल्य क्या है…
ये तो कोठे पर बैठने वाली तवायफ़ ही बता पाएगी,
जो हर दिन किसी की जरूरतों को पूरा करते-करते,
खुद को ख़तम करने पे मजबूर होती है।

यूँहीं तो मिला नहीं जीवन हमें…
जीवन के मूल्य को समझने के लिए
जीवन को जीना होगा,
सुख़ हो या दुःख हो हँस के सहना होगा,
पाना है अगर अपना लक्ष्य तो,
ख़ुद को लोहे की तरह तपाना होगा।।

'जीवन का मूल्य'

2-“क्या लिखूं”

क्या लिखूँ,
राधा-कृष्णा का प्रेम लिखूँ,
या रुक्मिणी-कान्हा का विवाह प्रसंग।

सती-शिव का वियोग लिखूँ,
या शिव-पार्वती का विवाह संगम।

मीरा की कृष्ण-भक्ति पर लिखूँ,
या रसख़ान के कृष्ण-पद के दोहे को लिखूँ।

राम को लिखूँ,
या रहीम को लिखूँ।

प्रेम पर लिखूँ,
या नफ़रत का बखान करूँ।

स्त्री की व्यथा पर लिखूँ,
या पुरुष के दम्भ पर लिखूँ।

कन्या के जन्म पर होने वाले मातम पर लिखूँ,
या बेटे के जन्म पर गाये जाने वाले सोहर पर लिखूँ।

देश की सीमा पर तैनात जवानों पर लिखूँ,
या सड़कों पर घूमते अवारा आशिकों पर लिखूँ।

माँ के प्रेम पर लिखूँ,
या पिता के अनुशासन पर लिखूँ।

देश में रहने वाले देशप्रेमियों पर लिखूँ,
या देश में पल रहे ग़द्दारों पर लिखूँ।

साहित्य में मिलने वाले पुरस्कारों पर लिखूँ,
या असहिष्णुता के नाम पर साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाने पर लिखूँ।

दुनियाँ में हो रहे आतंकवाद पर लिखूँ,
या आतंक के ख़िलाफ़ हो रही एकजुटता पर लिखूँ।

चीन-पाकिस्तान की धमकियों पर लिखूँ,
या भारतीय सेना के साहस पर लिखूँ।

देश को बचाने वाले नेताओं पर लिखूँ,
या देश को खोखला बनाने वाले नेताओ पर लिखूँ।

धरती पर हो रहे अत्याचारों पर लिखूँ,
या प्रकृति के आने वाले प्रकोप पर लिखूँ।

मंदिर में हो रहे भजनों पर लिखूँ,
या मस्ज़िद के अज़ान पर लिखूँ।

इस ज़ग का गुणगान करूँ,
या जग में हो रहे पापों का बखान करूँ।

लिखूँ, अग़र तो एक क़िताब लिख दूँ,
पर असमन्जस में हूँ,
देश की महिमा का बखान करूँ,
या… देश में हो रहे कुकर्मों को उजागर करूँ।

"क्या लिखूं"
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